हम कथा सुनाते राम सकल गुण ग्राम की<br />हम कथा सुनाते राम सकल गुण ग्राम की<br /><br />ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की .2<br /><br />रामभद्र के सभी वंशधर<br />वचन प्रयान धरम धुरंधर<br /><br />कहे उनकी कथा ये भूमि अयोध्या धाम की<br />यही जनम भूमि है परुषोत्तम गुण राम की<br />यही जनम भूमि है परुषोत्तम गुण राम की<br /><br />ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की<br /><br />चैत्र शुक्ल नवमी तिथि आयी मध्य दिवस में राम को लायी<br />बनकर कौशल्या के लाला<br />प्रकट भये हरी परम कृपाला<br /><br />राम के संग जो भ्राता अाये<br />लखन , भरत , शत्रुघन कहाये<br />गुरु वशिष्ठ से चारो भाई<br />अल्पकाल विद्या सब पायी<br /><br />मुनिवर विश्वामित्र पधारे, मांगे दसरथ के धृग तारे<br />बोले राम लखन निधिया है हमारे काम के<br /><br />हम कथा सुनाते राम सकल गुण ग्राम की<br /><br />सब के हृदय अधीर कर भरकर कश में तीर<br /><br />चल दिए विश्वामित्र संग लखन और रधुवीर<br />प्रथम ही राम तड़िका मारी की मुनि आश्रम की रखवाली<br />दिन भर बाद मरीछ को मार दस योजन किये सागर पारा<br />व्यथिक अहिल्या का किया पद रज से कल्याण<br />पहुंचे प्रभुवर जनकपुर करके गंगा स्नान<br /><br />सिया का भव्य स्वयंवर हैं , सिया का भव्य स्वयंवर हैं<br />सब की दृष्टि में नाम राम का सबसे ऊपर हैं<br />सिया का भव्य स्वयंवर है<br /><br />जनकराज का कठिन प्रण कारण रहे सुनाये<br />भंग करे जो शिवधनुष ले वाही सिय को पाये<br /><br />विश्वामित्र का इंगित पाया सहज राम ने धनुष उठाया<br />भेद किसी को हुआ न ज्ञात<br />कब शिवधनुष को तोडा रगुनाथ<br />निकट वृक्ष के आ गए वेळी<br />सिय जयमाल राम उर मेलि<br /><br />सुन्दर सास्वत अभिनव जोड़ी<br />जो उपमा दी जाए सो थोड़ी<br />करे दोनों धूमिल कांति कोटि रतिकाम की<br /><br />हम कथा सुनाते पुरुषोत्तम गुण ग्राम की<br />ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की<br /><br />सब को डुबोकर राम के रास में , लव कुश ने किये जान मन बस में<br />आगे कथा बढ़ाते जाए जो कुछ घटा सुनाते जाए<br /><br />कैसे हुयी विधिना की दृष्टि वक्र सफल हुआ कैकयी का वो चक्र<br />राम लखन सीता का वनगमन , वियोग में दसरथ मरण<br />चित्रकूट और पंचवटी जहा जहा जो जो घटना घाटी<br />सविस्तार सब कथा सुनाते लव कुश रुके अयोध्या आके<br /><br />गयाविजय का पर्व मनाया राम को अवध नरेश बनाया<br />नियति काल और प्रजा ने मिलकर ऐसा जाल बिछाया<br />दो अविभाज्य आत्माओ पर समय विछोभ का आया<br /><br />अवध के वासी कैसे अत्याचारी राम सिया के मध्य राखी संदेह की एक चिंगारी कलंकित कर दी निष्कलंक देहनारी<br />चिंतित सिया आये न कोई आंच पति सम्मान पर<br />नीरव रहे महाराज भी सीता के वन प्रस्थान पर<br />ममता मई माँओ के नाते पर भी पाला पड़ गया<br />गुरुदेव गुरुजन जैसे सबके मुख पर ताला पड़ गया<br /><br />सिय को लखन बिठा के रथ में , छोड़ आये कांटो के पथ में<br />ज्ञान चेतना नगर वासियो ने जब सब खो डाले<br />तब सहाय सिया के एक महर्षि बने रखवाले<br /><br />वाल्मीकि जी मिल गए सिय को जनक सामान पुत्री वाट वात्सल्य देह आश्रम में दिया स्थान<br />दिव्य दीप देवी ने जलाये राम के दो सूत सिय ने द्याहे<br /><br />नंगे पाओ नदिया से भर के लाती हैं नीर<br />नीर से विषाद के नयन भीगती हैं<br /><br />लकडिया काटती हैं धन कूट छांटती हैं<br />विधिना के बाड़ सह सह मुस्काती हैं<br /><br />कर्त्तव्य भावना के जग के दो पाटो में वो बिना प्रतिवाद किये पिसती ही जाती हैं<br />ऐसे में भी पुत्रो को सीखके सरे संस्कार स्वावलम्बी स्वाभिमानी सबल बनती है<br />व्रत उपवास पूजा अनुष्ठान करती हैं प्रतिपल नाम बस राम का ही लेती हैं<br /><br />जिनकी तानो ने किया ह्रदय विधिं माँ का उनको भी सदा शुभकामना ही देती हैं<br />देवी पे जो आपदा हैं विधि की विडम्बना ,या प्रजा की उठायी हुई आंधी की रेती हैं<br />जगत की नैया की खिवैया की हैं रानी पर स्वयं की नैया सिया स्वयं ही झेत